Shadows of Life

"Welcome to my personal space. Please read, enjoy and don't forget to comment - Life is too short to wake up with regrets."

मेरी सलीब

16:07 Posted by Shadows of life

अपने कांधों पे उठाना है मुझे,
मेरी ही सलीब को
इस शहर में,
इस आसमान के नीचे ही.
यह सलीब, न किसी ने देखी, न जानी ही
अनजानी, इस सलीब को लिए कंधो पे
कोशिश करती हूँ,
पहचानने को, ख़ुद को,
ख़ुद के अन्दर से.
निकालने को, ख़ुद को,
ख़ुद की गहराई से.

और यह सलीब है कि
धकेले जाती है
ख़ुद को ख़ुद में ही...
डोबोये जाती है
अपने ही लहू के पानियों में
लिए इस सलीब को ही
जीना है मुझे
उभरना भी है
आगे बढना भी है
लिए अपनी सलीब अपने ही कांधों पे...

Copyright © Vim

One of those poems, which are making me think alot...making me bring changes...help me fixing it friends....I have a junoon to fix it now!

2 Signature:

Anonymous said...

Excellent.. Loved the use of a hidden motif all throughout.

This burden is mine to bear.. Superb!

Shadows of life said...

Thank you Varun....Miss you around!