दोहरा चेहरा
नफरत भी तुझ से
है तुझ ही से मोहब्बत
तू ही मेरा नशा है
है तू ही मेरी सोहबत
फूलों सा महकता है साथ तेरा
गलियारे के खालीपन में गूंजता हर राग तेरा
आवाज़ में तेरी, खनक है सिक्कों सी
आंखों में तेरी, घृणा है रिश्तों की
मैं लौट तो आऊं दर पे तेरे..
क्या पेश करोगे मेरी बंदगी में?
दे पाओगे क्या ...
एक इन्सान ख़ुद के अन्दर से निकाल कर?
वो रख्शस रहित व्यक्तित्व को संवार कर?
वो कंधा जो दे पाए हौंसला
वो हाथ जो दे सकें सहारा
वो अंदाज़ जो दीवाना कर दे
वो प्रेम जो भूला दे...
मुझे
उस मुझ को, जिसे
है नफरत भी तुम से
और है तुझ से ही मोहब्बत...
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